कोलना गांव के ऐतिहासिक महत्व की कड़ी में मैं आप लोगों को बताना चाहता हूं की कोलना गांव का प्राचीन नाम कोलंदा उसके बाद कलना फिर वर्तमान नाम कोलना पड़ा सर्वप्रथम 1556 ईस्वी में लालू सिंह कुर्मी जयनगर रियासत से अपने लाव लस्कर के साथ यहां आए ऐसा नहीं है कि यहां उस समय कोई नहीं रहता था यहां मुस्लिम जमींदार थे जो काजी साहब के नाम से जाने जाते थे |
जीनसे जमीनदारी खरीदी गई ब्रिटिश गजेटिया के अनुसार कोलना दरबार की जमीनदारी 52 गांव की थी जिमनमें सोनभद्र मिर्जापुर और वर्तमान चंदौली जनपद जो उस समय वाराणसी जनपद में थाम वर्तमान वाराणसी जनपद का शाहनशाह पुर व आराजी लाइन का कुछ हिस्सा भी सम्मिलित था इसी के साथ और बहुत से गांव थे सब का उल्लेख नहीं किया जा सकता है
कोलना दरबार जनपद मिर्जापुर में ब्रिटिश हुकूमत को राजस्व देने वाला नंबर तीन का जमीदार गांव था दो मछलियां अनाज की बाली खाती हुई यह कोलना दरबार का प्रतीक चिन्ह था और ध्वज चिन्ह भी जो श्रेणी के अनुसार प्राचीन काल से ही फिर ब्रिटिश शासन द्वारा प्रदान किया गया था
इसी के साथ ही रानी विक्टोरिया द्वारा हिज हाईनेस अर्थात महाराज की उपाधि भी कोलना दरबार को प्रदान की गई थी हमारे प्रतीक चिन्ह को सिंह द्वार पर अंकित किया गया है 1857 के गदर के पहले कोलना दरबार को सैनिक टुकड़ी रखने का अधिकार था एक तोप भी मुख्य द्वार पर रखा हुआ था जो अब नहीं 1857 के गदर के पश्चात आर्म्स एक्ट के तहत इस अधिकार को ब्रिटिश सरकार द्वारा वापस ले लिया गया जनसंख्या की दृष्टि से हमारा परिवार बहुत बड़ा था
लेकिन कई पीढ़ी बाद सिर्फ शिव रतन सिंह बचे जीनके पास कोई संतान नहीं था फिर उन्होंने चुकी हम लोगों के पूर्वज हिंदू धर्म के वैष्णो मत को मानने वाले थे इसलिए स्वर्गीय शिवरतन सिंह जी ने 1850 ईस्वी में श्री ठाकुर जी मंदिर जिसमें श्री राम लक्ष्मण जानकी विराजमान है और उनके गण या अनुचर मंदिर के बाहर हनुमान, अंगद ,तुलसी और गरुड़ सहित विराजमान है
बनवाएं और मूर्तियों की स्थापना की चुकी विष्णु के आराध्यक्ष शिवजी हैं और शिव जी के आराध्य विष्णु जी हैं तो इसी प्रांगण में मंदिर के विष्णु जी के आराध्य शिव जी की भी मंदिर अर्थात विशाल शिवाला का निर्माण हुआ जो कि दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का एक अनोखा उदाहरण है
जिसका अवलोकन रानी विक्टोरिया ने भी किया था इसी के साथ ही कोठी के अंदर पांच आंगन है प्रथम आंगन का निर्माण भी मंदिर के साथ ही हुआ और मंदिर का उपासना विधि सनातन वैष्णव धर्म के अनुसार ही विधि विधान से आज भी प्रतिदिन होता है जिस समय इस्लाम का बोलबाला था
उसे समय यही मंदिर और दरबार परिवार चारों दिशाओं में सैकड़ो गांव में सत्य सनातन बैष्व धर्म का संस्कार भी फैला कर कर सनातन अहिंसा संस्कार का प्रचार किया अर्थात यहां पर मत्स्य और मदिरापान वर्जित था परिवार ही नहीं बल्कि गांव के लोग भी बड़ी संख्या में लहसुन प्याज का सेवन नहीं करते थे
जो आज भी कहीं ना कहीं लोगों में अहिंसा के रूप में विराजमान है दरबार परिवार इस मंदिर के संचालन के लिए श्री ठाकुर जी मंदिर ट्रस्ट की स्थापना किया जिसमें 6 लोग हैं और प्रत्येक वर्ष एक व्यक्ति को साल भर का कार्यकाल देखना होता है मंदिर के तीन कर्मचारी एक पुजारी एक कोठारी फुल पत्ता लाने के लिए सफाई करने के लिए तीसरा बर्तन धोने के लिए मंदिर में रखे गए हैं
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