Wednesday 21 June 2017

भृतिहरि ( उज्जैन नरेश ) की समाधि स्थल चुनार दुर्ग | Bhartihari Monument Chunar Fort U.P


चुनार दुर्ग से बाबा भृतिहरि का सम्बन्ध सदियों से जुड़ा हुआ है भगवती भागीरथी गंगा के तट पर बना यह दुर्ग जहा ऐतिहासिक महत्वक है वही तपस्वी तथा सिद्ध-साधक भृतहरि के कारण इसे आध्यात्मिक स्थली होने का भी गौरव प्राप्त है 




 
विंध्य पर्वत खण्ड पर बना यह प्राचीन दुर्ग अपनी सामरिक अवस्थित के कारण इतिहासकारों को निरंतर आकर्षित करता रहता है इसी किले में उज्जैन नरेश की समाधि है 



माना जाता है कि ईसा पूर्व पहले जब उज्जैन में भृतहरि का शासन था तब अपनी पत्नी से अलग होकर उन्होंने राज्य का त्याग कर दिया फिर भृतहरि अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को राज्य सौप कर तपस्या के लिये निकल पड़े 






अपनी इस यात्रा में उन्होंने विभिन्न स्थानों का भृमण किया तथा अंत में बंगाल के राजा गोपी चन्द के भी सन्यासी हो जाने पर गुरु गोरखनाथ का शिष्टयव स्वीकार कर लिए राजा गोपी चन्द्र भृतहरि के मौसेरे भाई थे ऐसा वर्णन कई स्थलों पर मिलता है नाथ सम्प्रदाय में लिखी अनेक पुस्तक में इन दोनों तपस्वियों को वर्णन विस्तार से हुआ है ।

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प्रश्न यह उठता है कि भृतहरि ने नाथ सम्प्रदाय में दीक्षा चुनार /(प्राचिन नाम चरणादीगढ़)आने से पूर्व ली या बाद में इस सम्बन्ध में कुछ भी सही कहना कठिन है यदि चुनार दुर्ग पर लगे शिलालेखों का प्रमाण माना जाये तो इस दुर्ग का निर्माण ईसा से 56 वर्ष पूर्व उज्जैन नरेश विक्रमादित्य ने इसलिये कराया था 


ताकि उनके बड़े भाई भृतहरि की तपस्या में कोई विघ्न व् बाधा न पड़े और इस वन क्षेत्र में जंगली जानवर और पशुओं से उनकी रक्षा हो सके यह भी कहते है कि भृतहरि ने अपने तपस्याकाल में त्रयी शतकों की रचना यही चुनार में की किंतु कई लोग यह भी कहते है रागरंग से विरक्त या अलग होकर जब वे यहा आये तब उन्होंने वैराग्य शतक की रचना की वास्तविकता यह है कि प्राचीन काल से ही विंध्य पर्वतमालाओं को पवित्र तथा साधना के लिए उपयुक्त माना जाता है

इस दृष्टि से गंगा के तट पर स्तिथ इस विंध्य पर्वत खण्ड पर उनके यहा आने और तपस्या करने की बात उचित ही है आगे चलकर उनके छोटे भाई राजा विक्रमादित्य को यह पता चला की भृतहरि चुनारगढ़ में तपस्यारत है तब उन्होंने उनकी सुरक्षा के लिए एक परकोटा बनवा दिया आगे चलकर कुछ राजाओं ने इस दुर्ग का थोड़ा-थोड़ा करके निर्माण कराया तथा कालांतर में इसे सामरिक महत्व प्राप्त हो गया



इस विश्वास् के चलते की यह स्थान भृतहरि का तपोभूमि रहा यहा नाथ सम्प्रदाय के लोग तथा अन्य लोगो के आने का क्रम जारी हो गया मान्यता अनुसार वर्तमान चुनार दुर्ग के पश्चिमी ओर ठीक गंगा के जलस्तर से ऊपर की गुफा में भृतहरि ने समाधि ली अतः इस असुविधा को दूर करने के लिए दुर्ग के अंदर ही ऐतिहासिक सोनवा मण्डप के निकट उनकी समाधि बना दी गयी

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मुगल शाशको में कट्टर #औरंगजेब# ने इस समाधि को स्वीकार किया है था तथा इसके पुजारियों को समाधि की पूजा करने हेतु पर्याप्त धन देने का फरमान जारी किया था आजादी के बाद अब यह धन राजकोष से नही मिलता कहा जाता है कि यहा मांगी जाने वाली हर मन्नत- मनोतिया पूरी होती है समाधि स्थल पर एक सुराख़ बना हुआ है 

औरंगजेब का हुक्मनामा

इस सम्बन्ध में माना जाता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक इसमें मनौती मानते समय तेल डालेगा तो यह छिद्र या छेड़ कुछ बूंदों से भर जायेगा और अश्रद्धा रहने पर इस छिद्र में चाहे जितना भी तेल डाला जाया यह छिद्र नही भरेगा 

भृतहरि के समाधि स्थल पर जारी बाबर का हुक्मनामा-


फ़ारसी का हिन्दी अनुवाद- जो बादशाही पहले बित गयी और जो कायम है जो आने वाली हो वह एक चांदी का सिक्का बतौर खर्च प्रतिदिन इस समाधि स्थल पर प्रतिदिन पहुचा दिया जाये ताकि भृतहरि की पूजा पुजारी करते हुए बादशाही को कायम रहने की दुआ मांगता रहे तुलसी और जोखन इसके खिदमतगार है ये पहले भी थे मेरे समय में भी थे और आगे भी इनके खनदान को बाबत पूजा दिया जाये क्योकि कोई जागीर और जमीन इन्हें नही दी गयी है 


औरंगजेब का हुक्मनामा- खुदा के नाम की बन्दगी मै समाधि पर आया और मैंने आवाज दी कोई उत्तर नही मिलने पर मैने इसके विरुद्ध खिलाफत किया मस्जिद बनवाने हेतु इसे तुड़वाया किंतु समाधि पर एक लकिर पैदा हुयी जिससे भौरे निकलना शुरू हुए भौरों को नष्ट करने हेतु इस लकीर में 17 कुप्पा खौलता तेल छुड़वाया किन्तु न भौरे मरे न छेद भरा तो माफ़ी मांगी और भृतहरि का अस्तित्व माना तथा क़दर करने की बात स्वीकार की कोई भी बादशाह आये इस समाधि की इज्जत करे और खिलाफत करने की हिम्मत न करे 

औरंगजेब का हुक्मनामा हिंदी ट्रांसलेशन 

महीना सुबरात तारीख 14 1082 हिजरी औरंगजेब का चुनार दुर्ग पर आगमन पुजारी कंगाली नाथ और मुन्ना नाथ जोगी के समय हुआ औरंगजेब से लेकर अंग्रेजी राज में 1947 ई.तक पूजा हेतु धनराशि मिली इसके पश्चात तमाम लिखा पढ़ी के बाद भी कोई राजकीय सहायता भृतहरि की पूजा तथा दुर्ग की देखभाल या मरम्मत करने हेतु कोई राशि नही मिली न तो किसी को इस ऐतिहासिक धरोहर की देखभाल करने की प्रवाह हुयी

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चुनार दुर्ग में वर्तमान समाधिस्थल तो निश्चित ही सुरक्षित है किंतु इस दुर्ग की चारदीवारी जगह-जगह पर छतिग्रहस्त हो रही है किले के दीवारों तथा ऐसी कई जगह भरी पेड़ और झाड़ियां उग जाने से ऐसे कई धार्मिक स्थलों के काफी नुकसान हो रहा है 


वैसे वर्तमान समय में यह दुर्ग पी. ए. सी. के ट्रेनिग कैम्प होने के कारण कुछ देखने योग्य भी था किंतु अभी इस दुर्ग को पुरातत्व विभाग लेना चाहता है यह सर्वथा अनुचित होगा यह बात जगजाहिर है कि पुरातत्व विभाग के पास तो भुजी भांग भी नही है

यह विभाग किसी छोटे से छोटे स्थल का भी रक्षा नही कर सका है तब इतने बड़े दुर्ग की रक्षा करना इसके लिए कत्तई सम्भव नही क्योकि ऐसा होने से सबको बस अपना टाइम पास करने जैसा रहेगा यदी भविष्य में ऐसा हुआ तो यह दुर्ग अराजकतत्वों का अड्डा बन जायेगा तथा शीघ्र ही खंडहर के रूप में बदलकर 

अपनी दुर्दशा पर आंसू बहायेगा अच्छा तो यही होता की इसमें पी ए.सी. का प्रषिषण केंद्र बना रहता और शाशन दुर्ग के छतिग्रष्ट भागों की मरम्मत करा दे वाराणसी मिर्जापुर मार्ग पर बना यह दुर्ग पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है इसलिए सरकार से हम चुनार नगर वासियो की ओर से यह गुजारिश है कि इस ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा करे |
  1. अद्भुत अनुभव होता है बार-बार जाने की इच्छा होती है

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  2. Aaj maine (Akhilesh kunar) 25/06/2021 ke din eis dharohar ka darshan Grahan kiya , mujhe ek aitihasik guan aur shakti ki preeti hui ,,,,, yha sarkar dwara aarthik sahayta mile

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  3. it is spiritual place of India. it is the centre of power which
    produce positive energy in the human body and nature also.

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