Friday 13 December 2019

चुनार किले के बारे में फिर से #दैनिक जागरण में अंक निकला गया है ।


अब भी गौरव का द्वार, अनूठा किला चुनार

थरीली दीवारें मगर हर ईंट पर भारत के गौरवशाली इतिहास की इबारत। सम्राटों के भाग्योदय की गवाह, उनके ठाट और खाक होते राजपाट भी इसने देखे हैं। ब्रिटिश पंजे में फंसती सोने की चिड़िया के पंखों की फड़फड़ाहट भी जज्ब हैं इस बूढ़े दुर्ग की प्राचीरों में। बात हो रही है मीरजापुर स्थित चुनार दुर्ग की। वक्त के थपेड़ों से मिले जख्म समुचित रख रखाव न होने से आज भी ताजा हैं।


सम्राटों की आन-बान-शान का गवाह


चुनार दुर्ग सम्राटों की आन बान शान से जुड़ा रहा है। राजा विक्रमादित्य ने 56 ईस्वी पूर्व में इसका निर्माण कराया। उन्होंने इसे जल व गिरि दुर्ग प्रकार का सम्मिलित रूप दिया।

उत्तर में गंगा की गोद में समाया और पश्चिम व पूरब का भी कुछ अंश जल में खड़ा तो शेष हिस्सा 150 फीट की ऊंचाई तक चढ़ा है। इसकी संरचना इसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाती है। ऐसे में उत्तर भारत के किसी भी हिस्से पर शासन करने वाले राजाओं के लिए इस पर आधिपत्य उनकी शान से जुड़ा रहा।



दुर्ग के बगल से गुजरता मगध से दिल्ली होते दक्षिण भारत को जाने वाला मार्ग इसे कभी खास बनाता था। इस रास्ते की पुष्टि वहां से मिले अवशेष भी करते हैं। इस दृष्टि से किसी सैनिक अभियान पर नियंत्रण रखने में दुर्ग की स्थिति आदर्श मानी जाती रही।

कई प्रतापी शासकों के उत्थान और पतन के गवाह चुनार गढ़ के इस ऐतिहासिक किले को 90 के दशक में देवकी नंदन खत्री के उपन्यास पर आधारित टीवी धारावाहिक चंद्रकांता की वजह से युवा पीढ़ी में भी ख्याति मिली।

किले के मुख्य बुलंद दरवाजे के पास लगे शिलापट्ट से पता चलता है कि ¨हदुस्तान फतह के लिए इस दुर्ग पर आधिपत्य तत्कालीन हुक्मरानों के लिए कितना जरूरी था।



इतिहास पर गौर करें तो पृथ्वीराज, बाबर, हुमायूं, अकबर समेत आधा दर्जन से अधिक शासकों ने इसे अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। शेरशाह सूरी का भाग्योदय इस दुर्ग से ही हुआ। वहीं ब्रिटिश हुकूमत ने भी 1765 ईस्वी में इस दुर्ग को कब्जे में लिया। बाद में वारेन हेस्टिंग्स ने भी यहां डेरा डाला।

यहां पड़े श्रीहरि के पद पौराणिक आख्यानों के अनुसार राजा बलि की दान धर्मिता परखने के लिए वामन अवतार में भगवान विष्णु ने ढाई पग में पूरी पृथ्वी नाप दी थी। इसमें उनका एक पग चुनार में इसी स्थान पर पड़ा था। संरचना भी पदचिह्न का अहसास कराती है। इसीलिए किले को चरणाद्रि के नाम से जाना जाता है।
फिलवक्त यह है


हाल दुर्ग में एक दर्जन से अधिक भवन हैं। इनमें से वारेन हेस्टिंग्स का बंगला, सोनवा मंडप, भरथरी (विक्रमादित्य के भाई) की समाधि, बैरक, फांसी घर आज भी विद्यमान है। इनमें से बैरक की दीवार दरक कर गंगा की ओर सरक रही है। इसके अलावा ज्यादातर हिस्से में पीएसी का प्रशिक्षण केंद्र है। शीश महल में कमांडेंट का आवास तो पीडब्ल्यूडी का अतिथि गृह भी चलता है।


वारेन हेस्टिंग्स के बंगले में म्यूजियम पुरातत्व विभाग ने कभी वारेन हेस्टिंग्स का बंगला रहे भवन को म्यूजियम का रूप दिया जाना है। दुर्ग की दीवारों में मिले पुरावशेष इसमें संरक्षित किए जाने हैं। इसमें तमाम क्षतिग्रस्त दीवारों में चुनी गई मूर्तियां हैं। समझा जाता है कि विभिन्न शासकों ने पुनर्निर्माण के दौरान अपनी-अपनी पसंद की कलाओं का इसमें प्रयोग किया।


पुरातत्व विभाग के हाथ संरक्षण 

 

दुर्ग के पुरातिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए पुरातत्व विभाग को संरक्षण का कार्य मिला था। थाती को सहेजने के लिए तेरहवें वित्त आयोग से पांच करोड़ 33 लाख 76 हजार रुपये 2013 में स्वीकृत किए गए थे। हालांकि अभी साज-संवार और पर्यटन विस्तार के लिहाज से बहुत कार्य करने की जरूरत नजर आती है।

22 करोड़ का नया प्रस्ताव 


किले में लाइट एंड साउंड शो, चुनार किले से लेकर गंगा घाट तक सुंदरीकरण के लिए हाल के वर्षो में 22 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया गया है। फिलहाल जो शासन में है।

Post a Comment

Start typing and press Enter to search