Wednesday 5 July 2017

आचार्य कूप और श्री विठ्ठलेश्वर महाप्रभु जी चुनार | Sri Vitheleswar Mahaprabhu & Aacharya Well Chunar Mirzapur


 

मुख्यतः चार वैष्णव सम्प्रदाय माने गए है ये है - रामानुज सम्प्रदाय ,माधव सम्प्रदाय,निम्बार्क सम्प्रदाय,और वल्लभ सम्प्रदाय रामानुज सम्प्रदाय के पर्वतक श्री रामानुजाचार्य थे माध्व सम्प्रदाय के श्री मध्वाचार्य थे निम्बार्क सम्प्रदाय के पर्वतक श्री निम्बुजचार्य थे 

 



और वल्लम्भ सम्प्रदाय के पर्वतक श्री वल्लभाचार्य थे वल्लभ सम्प्रदाय के अवतारणा करने वाले महाप्रभु वल्लभाचार्य के द्वारा पुष्टि मार्ग को सारे देश मे विशेष प्रतिष्ठा मिली और इसके लाखो भक्त हुए महाप्रभु जी के लीला विस्तार के पश्चात वल्लभ सम्प्रदाय के प्रचार प्रसार का सारा भार उनके ज्येष्ठ पुत्र गोस्वामी गोपीनाथ जी के कंधों पर आ गया 



इन्होंने अड़ैल (प्रयाग) में एक सोम यज्ञ और विष्णु यज्ञ किया गोपिनाथ जी रचित केवल एक ग्रन्थ से साधन दीपिका प्राप्त होता है विक्रम संवत, 1620 में इनके तिरोधना के पश्चात वल्लभ सम्प्रदाय जिम्मेदारियों का भार महाप्रभु वल्लभाचर्या के दृतिय पुत्र गुसाई विट्ठलनाथ जी के ऊपर आ गया ।


गुसाई विठ्ठल नाथ जी का जन्म (चरणादिगढ़) चुनार के एक मनोरम स्थान पर हुआ था कहा जाता है कि गोसाई जी का प्राकट्य वि.स. 1572 मि पौष कृष्ण -9 को आपरह्न में हुआ था इस अवसर पर छठी के दिन गुसाई जी ने अपने मात्र एक कटाक्ष से लक्षावधि जीवो को अंगीकार किया था मान्यता है 




कि प्राकट्य के एक महीने पश्चात जब गंगा पूजन हुआ उस समय चुनार के निकट प्रवाहित होने वाली भागीरथी गंगा स्वयं बढ़ी और उन्होंने ने गोसाई जी का चरण स्पर्श किया यह देख कर माता अक्का जी चकित रह गयी और उसी समय अक्का जी से गंगा जी ने कहा आप परम् भग्यशाली है 



आपके पति और पुत्र दोनो ही पूर्ण पुरषोत्तम है उसी समय गोसाई जी का नाम करण विट्ठलनाथ हुआ आगे चलकर इन गोसाई जी के दो विवाह हुए प्रथम विवाह पदमावती जी से हुआ इस विवाह से गोसाई जी को छ पुत्र और चार पुत्रियों की प्राप्ति हुयी गोसाई जी को दूसरे विवाह से एक मात्र पुत्र घनश्याम जी हुए जिस काल मे वल्लभाचार्य जी लीला में पधारे गोसाई जी ने सोमयज्ञ किये थे 



परथन वि.स.1592 अड़ैल में और दूसरा वि.स. 1610 चरणाटधाम चुनार में किया था गोसाई जी संस्कृत, बृजभाषा औऱ हिंदी के अच्छे जानकार थे गोसाई जी सम्राट अकबर के द्वारा कई बार सम्मानित हुए थे सम्राट अकबर के आमंत्रण पर गोसाई जी ने कई धर्मं सभाओ में भाग लिया इन सभाओ में उस समय प्रमुख आचार्य एव विद्वान उपस्तिथ रहा करते थे



 गोसाई जी परम् त्यागी थे और अन्धविश्वाश को नही मानते थे एक बार बादशाह ने इन्हें एक मणि दी गोसाई जी ने तीन बार बादशाह से कहा की अब इस मणि पर हमारा स्वतन्त्र अधिकार है बादशाह के हा कहने पर विट्ठलनाथ जी ने उस मणि को उठाकर यमुना में डाल दिया इस पर बादशाह नाराज हो गए तब गोसाई जी ने यमुना से अंजलि भर कर वैसा ही कई मणिया यमुना से निकलकर बादशाह से कहा इनमे जो आपकी है ले लो 



इस पर बादशाह लज्जित हुआ और विठ्ठेलेश्वर महाप्रभु को साक्षात ईश्वर मानने लगा ऐसे विलक्षण एव विशाल प्रतिभा के धनी गोस्वामी जी का जयंती शनष्टग्रहपति श्री श्याममनोहर जी महाराज के नेतृत्व में गोसाई जी के प्राकटय स्थल चुनार में श्री मुकुन्द सेवा संस्थान गोपाल मंदिर वाराणसी द्वारा चार जनवरी को प्रत्यक वर्ष मनाया जाता है 



इस तीन दिवसीय जन्मोत्सव में देश भर के पुष्टिमार्ग भक्तो के अतिरिक्त बनारस ,अहमदाबाद ,उज्जैन और अनेक शहरो से हजारों लोग इसमे सम्मिलित होते है इस अवसर में उस वक्त चुनार में लघुकाशी का दृश्य होता है ।

Post a Comment

Start typing and press Enter to search